सितंबर महीने की यादें
दिनांक :- २९/१२/२०२१
दिन :- बुधवार
मेरी डायरी मेरी साथी ! तुम तो जानती ही हो कि सितंबर महीने में ही शिक्षक दिवस आता है यानी हमारे सभी गुरूजनों का दिन है । प्राचीन काल की किताबों और ग्रंथों को यदि हम पढ़ते हैं तो हमें गुरु शब्दों का ही अधिकतर इस्तेमाल पढ़ने को मिलता हैं । गुरू वह होता हैं जो हमें हमारे जीवन की संपूर्णता को हासिल करने की दिशा में बढ़ने के लिए हमारा पथ प्रदर्शक बनता है । तुम तों जानती ही होगी कि माॅं की कोख से बाहर निकलने से पूर्व ही हमारा लगाव हमारे परिवार के अन्य सदस्यों की अपेक्षा माॅं से अधिक होता है और होगा भी क्यों नहीं ? माॅं ही तो होती है जो हमें अपनी कोख में नौ महीने हमें रखती है । इन नौ महीनों में माॅं स्वयं से अधिक अपने बच्चे का ख्याल रखती हैं । उसे कोई नुक़सान ना पहुंचे , वो ठीक तों है , आज मुझे लात नही मार रहा / रही । ये सारी बातें बच्चों के प्रति माॅं के प्रेम और
चिंताओं को दर्शाता हैं । जन्म लेने के बाद तो हमारी जिंदगी में बहुत ऐसे लोग आतें हैं जिनसे हम कुछ ना कुछ सीखते ही है । स्कूल और काॅलेज जातें हैं तों शिक्षक या गुरू हमें शिक्षा की रोशनी द्वारा हमारे जीवन को अलौकिक करते है । घर पर माता- पिता , दादा-दादी , नाना-नानी , भाई-बहन हमें अपना समझ हमें इस दुनिया में रहने योग्य बनाने में हमारे मददगार बनते हैं । हमें वह सब सिखाते हैं जिससे कि हम इस घर, समाज और देश में अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए आसानीपूर्वक निर्वहन कर सकें । मेरे कहने का अर्थ यह है कि हमारे जीवन को योग्य बनाने में हमारे आस-पास रहने वालों का भी उतना ही योगदान होता है जितना कि हमारे शुभचिंतकों का । प्रत्येक व्यक्ति हमें अच्छी - बुरी सभी तरह के ज्ञान देता है । यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने विवेक की शक्ति द्वारा उन बातों को कितनी मात्रा में अपने भीतर सकारात्मक और नाकारात्मक रूप में स्वीकार करते हैं । एक छोटा सा बच्चा भी हमें बहुत कुछ सिखा सकता है और हमें बड़े होने के अपने अहम को भूलकर उससे सीखने का प्रयत्न करना चाहिए ।
मेरे जीवन में मेरी माॅं से अधिक स्थान किसी और का नहीं । मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है और आगे भी मुझे उनसे बहुत कुछ सीखना शेष है । मैंने अपनी माॅं यानी मेरी पहली गुरु के बारे में चंद्र पंक्तियां लिखी है जों इसप्रकार है । 👇
मेरी पहली गुरु " मेरी माॅं "
" जिंदगी के गमों से लड़ना सिखाने के लिए मुझको ।
अक्सर मेरा इम्तिहान भी लेती थी ।।
नकल भी नहीं करने देती थी मुझको ।
मेरे साथ ही खड़ी रहती थी ।।
नंबर भी बहुत कम देती थी मुझको ।
मेरी शिकायतें दूसरों से सुन लेती थी ।।
गुस्से में जोर से मारती भी थी मुझको ।
रोते हुए मुझे सीने से लगा भी लेती थी ।।
मेरी जिद से तंग आकर मुझको ।
कई बार खुद ही क्लास बंक करवा देती थी।।
आज कई सबक उनके याद कर लिए हैं मैंने ।
एक माॅं ही तो है जो जिंदगी के
हर इम्तिहान में पास कर दिया करती हैं ।।
शिक्षक वह होता है जो विद्यार्थियों को उसके सुंदर और उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षा का ज्ञान देते हैं । उसे बताते है कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है ? कैसे उन्हें अपने जीवन में ज्ञान के प्रकाश में सिर्फ आगे बढ़ना ही नहीं है बल्कि इसमें जीत भी दर्ज करनी है। एक विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपने जीवन के मार्ग में आगे बढ़ता है और अपने ज्ञान का सही इस्तेमाल करके वह एक सफल और एक कामयाब इंसान बनता है।
मेरी डायरी मेरी साथी ! तुम सोच कर स्वयं ही देखो कि अगर शिक्षक न होते तो इस संसार का क्या होता ? ऐसी कल्पना मात्र से ही डर लगता है। हमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की जयंती के दिन ही यह दिवस प्रतिवर्ष मनाया जाता आ रहा हैं । शिक्षा के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के कारण ही उनके जन्मदिन के दिन को शिक्षक दिवस का नाम देकर उन्हें सम्मानित किया जाता है । वें बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और शिक्षा को जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानते थे। डाॅक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षक के बारे में कहा था कि 👇
" एक शिक्षक वह नहीं है, जो छात्र के दिमाग में किसी भी ज्ञान को जबरदस्ती डाले बल्कि वास्तविक शिक्षक वह होता है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें ।"
कितनी सटीक बातें कही थी हमारे स्वतंत्र देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति जी ने । एक सफल शिक्षक वह होता है जो अपने विद्यार्थियों को पहले ही चुनौतियों के प्रति सजग रहने की हिदायत के साथ उसे उन चुनौतियों और परेशानियों से लड़ने के लिए तैयार करता है ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! इसी महीने ०९ तारीख को तीज था । हमारे यहां सुहागन स्त्रियां इस व्रत को अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे विधि - विधान से करती हैं । इस दिन २४ घंटे का उपवास भी रखा जाता है । उजाला होने के साथ ही यह व्रत शुरू हो जाता है और अगले दिन उजाला होने के बाद खत्म । यह निर्जला व्रत है । निर्जला मतलब ना तो हम इसमें पानी पी सकते हैं और ना ही खाना खा सकते हैं । कुछ कठिन व्रतों में से यह एक व्रत है जो हमारे यहां स्त्रियों को करना ही पड़ता है । इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है । आज के दिन सुहागन स्त्रियां सोलह सिंगार करके माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा - अर्चना करती हैं । किसी-किसी साल तीज के दिन ही चौरचन का भी तुरंत आ जाता है लेकिन इस साल यह व्रत ९ तारीख को नहीं बल्कि १० तारीख को आया था । इस दिन यानी गणेश चतुर्थी को हर साल शाम के वक्त चंद्रमा की पूजा की जाती है । चलों ! इसे थोड़ा विस्तार से बताती हूॅं । भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है और इसी दिन चौरचन का पर्व भी मनाया जाता है। इस दिन चंद्रदेव की पूजा - उपासना की जाती है। लोककथाओं के अनुसार जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी की शाम भगवान गणेश के साथ चंद्रदेव की पूजा करता है वह चंद्र दोष से मुक्त हो जाता है। शाम के समय चौरचन पूजा होती है । पुराणों में कहा गया है कि इसी दिन चंद्रमा को कलंक लगा था इसलिए इस दिन चाँद को नहीं देखना चाहिए । चौरचन पूजा में आंगन को गोबर से लीपा जाता है और पीसा चावल के घोल से जितने भी परिवार में सदस्य हैं उनके अनुसार गोलाकार आकृतियां बनाई जाती है । उन्हीं आकृतियों मिट्टी के बर्तन में रखा हुआ दही रखा जाता हैं । उसके आगे में पूरी - खीर , मिठाई और फल रखें जातें हैं । परिवार के सभी लोग अपने हाथ में कोई न कोई फल जैसे खीरा , केला सेब आदि रखकर चाॅंद की अराधना एवं दर्शन करते हैं ।
द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण पर भी चंद्र दोष लगा था क्योंकि उन्होंने चतुर्थी तिथि को चाॅंद को देख लिया था जिसके प्रभाव के कारण उन्हें मणि चोर समझा जाने लगा था । भगवान श्रीकृष्ण को देवर्षि नारद जी ने चंद दोष के बारे में बताते हुए उन्हें चौरचन व्रत करने को कहा था । नारदजी के कथनानुसार उन्होंने यह व्रत किया तब जाकर उन पर से यह दोष हटने का मार्ग प्रशस्त हुआ था । एक और कथा के अनुसार एक बार भगवान गणेश को देखकर चंद्रमा ने हँस दिया। जिस पर गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि जो आपको देखेगा उसे कलंक लगेगा। इसके बाद चंद्रमा ने भाद्रपद (भादो) शुक्ल चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा की । गणेश जी प्रसन्न हुए और चंद्रमा के दोष दूर हुए लेकिन तब जब कोई अपने हाथ में फल लेकर उनके दर्शन करें । यही वजह है कि आज के दिन कोई फल हाथ में लेकर ही चांद के दर्शन करने चाहिए । इसी महीने की २० तारीख को मुझे वैक्सीन की दूसरी दूसरी डोज भी लग गई वह भी अच्छे से बिना किसी चिक-चिक और झिकझिक के । मुझे याद है जब मेरी सासू माॅं को वैक्सीन की दूसरी डोज दिलाने के लिए मेरे पतिदेव जी पास के ही सरकारी स्कूल में जहां पर यह डोज दिया जा रहा था वहां लें गए । वें लोग कतार में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार कर ही रहें थे कि एक तेईस - चौबीस साल की लड़की वहां आ गई और कतार में खड़े होने की बजाय सीधे वैक्सीन सेंटर के उस कमरे में चली गई जहां आधार कार्ड और मोबाइल नंबर देखकर पर्ची काटी जाती थी । पतिदेव जी ने कहा कि वें लोग और बाकी सभी भी कतार में खड़े थे लेकिन उस लड़की का यूं दनदनाते हुए कमरे में पहुंच जाना और अपने से पहले आएं लोगों से पहले वैक्सीन लगवाने के लिए पर्ची काटने के लिए कहना , यह सब वहां कतार में खड़े अपनी बारी आने का इंतजार करते लोगों को नागवार गुजरा और उन्होंने इसके खिलाफ बोलना शुरू किया । लोगों के बोलने का असर हुआ और पर्ची काटने वाले महानुभाव ने उस लड़की और उसके साथ पाॅंच - छः लोगों की पर्चियां काटने से मना कर दिया । मना करने का उस लड़की पर ऐसा असर हुआ कि उसने हंगामा शुरू कर दिया और यह हंगामा बढ़कर इतना बड़ा हो गया कि वैक्सीन लगाने आएं सभी लोगों ने अपने - अपने सामान को उठाया और वहां से निकल लिए । कतार में खड़े लोग उस लड़की को बुरा - भला कहते हुए अपने - अपने घरों को लौट आएं । इसे कहते हैं तिल का ताड़ बनाना । उस लड़की के दिमाग में यह छोटी-सी बात नहीं आई कि उसे भी तो कतार में खड़े होना चाहिए था ? अगर वह कतार में खड़ी होकर सही तरीके से सभी कार्यों का निर्वहन करते हुए वैक्सीन लगवा लेती तो वह नौबत नहीं आती जो उस दिन आई । उस लड़की ने ना तो खुद वैक्सीन लगवाई और ना ही किसी और को ही लगने दी । उस दिन तो यह बात हुई थी कि " हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी लें डूबेंगे ।" 😊😊 मेरी सासू माॅं को वैक्सीन की दूसरी डोज लगी लेकिन उस स्कूल और उस दिन नहीं लगी । अगले दिन उन्हें वैक्सीन की दूसरी डोज लगी । मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ । जहां मुझे यह सूई लगी वह था तो सरकारी अस्पताल ही लेकिन यह देखकर मन को तसल्ली हुई कि यहां उपस्थित सभी लोग जागरूक है और उन्हें नियम-कानून की समझ के साथ-साथ उसका पालन करना भी वें सभी बखूबी जानते हैं । सूई है तो दर्द तो देगा ही । मेरे बाएं हाथ के ऊपरी हिस्से को दर्द का एहसास तो हुआ लेकिन आखिरकार मैंने सूई लगवा ही ली । पहली बार वैक्सीन लगवाई थी तो दर्द के साथ-साथ बुखार भी हुआ था । उस दिन भी दर्द को सहकर सूई तो लगवा ली लेकिन बुखार होने का डर था । मेरे डर को पतिदेव जी बिना मेरे कहे ही समझ गए और उन्होंने मुझे अस्पताल में ही दिए पारासिटामोल दवाई खिला दी ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! मुझे २५ सितंबर की दोपहर याद है जिसमें मैं डर ही गई थी।क्या कहा मैं डर गई ? हाॅं सही कह रही हूॅं । हुआ यह था कि मैं दोपहर में मैं कपड़े डालने छत पर गई । मुझे छत पर गए हुए २ मिनट भी नहीं हुए थे कि बारिश शुरू हो गई । मैंने देखा कि बारिश हो रही है फिर भी मैं कपड़े डालती रही । अब तुम पूछोगी कि मैं बारिश में कपड़े कैसे डाल रही थी ? हां तो तुम्हारा यह पूछना जायज भी है क्योंकि हम छत पर जब बारिश हो रही हो तो कपड़े नहीं डालते क्योंकि इसके भींगने का डर होता है । सही कहा ना मैंने ! तुम भी यही कहने वाली थी ना । तुम्हारा यह कहना बिल्कुल सही है लेकिन तुम तो जानती ही हो कि हम नए जगह पर शिफ्ट हुए हैं और वहाॅं के छत के ऊपर टीन का शेल्टर बना हुआ है जिसके कारण बारिश का पानी छत पर नहीं आता है । हमारे यहाॅं छतों पर ऐसा नहीं होता है लेकिन यहाॅं आकर मैंने कुछ अलग देखा । यहाॅं अधिकांश घरों की छतों पर ऐसा ही टीन का शेल्टर लगा हुआ है । एक तरह से मुझे तो ठीक ही लगा क्योंकि कभी-कभी ऐसा होता है कि अभी बाहर धूप खिली होती है और कुछ ही देर बाद झमाझम बारिश शुरू हो जाती है । ऐसे में हमें अपनी छत पर भागना पड़ता है। हम भाग कर अपनी छत पर जाते तो हैं लेकिन हमारे कपड़ों के साथ-साथ हम भी भींग जाते हैं। कई बार तो अपने यहाॅं इस बारिश के कारण मैंने डांट भी खाई है । हम घर के अंदर कुछ काम करते रहते हैं या सारा काम निपटा कर आराम ही करते रहते हैं ऐसे एकाएक बारिश आ जाती है जो हम देख - सुन नहीं पाते । बाद में हमें बड़ों द्वारा डाॅंट - फटकार पड़ती है कि हमने बारिश का ध्यान नहीं रखा । यह सुनकर गुस्सा तो बहुत आता है लेकिन कर ही क्या सकते हैं ? अपने बड़ों की बात सुननी ही पड़ती है । बचपन से सुनते आ रहे हैं और साथ ही सहते भी तो आ रहें हैं। छत पर सुख रहे कपड़ों और भी बहुत सारी चीज है जो छत पर सूखने के लिए डाली रखी होती थी जिसके लिए हमें बहुत कुछ सुनना पड़ता था। कभी-कभी तो अचार के लिए हमने ऐसी डांट खाई है कि पूछो ही मत । तुम तो जानती ही हो अचार में एक बार पानी चला जाए तो पूरा अचार खराब हो जाता है। खाने लायक नहीं रहता उस में सफेदी जैसा दिखने लगता है । उसके बाद वह खाने लायक नहीं होता । मेरी सासू मां को अचार बनाने का बहुत शौक है । अपने बेटे के लिए तरह-तरह के अचार वह बनाती ही रहती हैं । ऐसे में अगर उनके आचार को किसी दिन बारिश की एक बूंद भी पड़ जाए तो हमारी उस दिन खैर नहीं । 🤗🤗 हाॅं तो मैं उस दोपहर के बारिश की बात कर रही थी । छत पर शेल्टर होने की वजह से हमारी मकान मालकिन दीदी भी अपने कपड़े बारिश के दिन भी छत पर ही छोड़ देती है और उनकी देखा - देखी मुझे भी यह आदत लग गई है । मैं भी अपने कपड़े बारिश हो रही होती है तब भी छत पर ही छोड़ देती हूॅं । आज भी मैंने यही सोचा कि बाहर बारिश हो रही है छत पर तो बारिश की एक बूंद भी नहीं आ रही ऐसे में मैं कपड़े डाल कर चली जाऊंगी लेकिन यही मेरी सबसे बड़ी भूल थी। मैंने एक दो कपड़े ही रस्सी पर डाले ही थे कि अचानक ही हवा के साथ बारिश का जोरदार झोंका मेरी तरफ आया जिसने मुझे तो भिंगाया ही साथ ही मेरे हाथ में मैंने जो कपड़े पकड़ रखे थे उसे भी उड़ा कर छत के दूसरी तरफ ले गया । इससे मैं निपटने की कोशिश कर ही रही थी कि अचानक ही बिजली चमकने लगी और एक जोरदार गरज के साथ कहीं दूर बादल फटने की आवाज मुझे सुनाई दी । छत पर चूंकि मैं अकेली थी इस कारण उस वक्त मैं डर गई थी । अपने डर पर काबू पाते हुए मैंने जैसे-तैसे कपड़ों की बाल्टी उठाई और छत से नीचे आने की कोशिश करने लगी लगी । जब मैं छत पर से निकल रही थी तब मैंने देखा कि छत पर रखे सामान भी हवा और पानी के जोरदार झोंके से इधर उधर भटक रहे थे । मैं जल्द से जल्द अपने घर के कमरे में पहुॅंचना चाहती थी । मैंने अपनी चाल तेज कर दी। तेज कदमों के साथ मैं छत के दरवाजे के पास पहुॅंच गई। मैंने छत का दरवाजा बंद किया और सीढ़ियों पर ही कपड़ों की बाल्टी छोड़ दी और तुरंत ही अपने कमरे में आकर कुर्सी पर बैठ गई । अचानक ही आकर कुर्सी पर बैठने के कारण मेरी बेटी जोकि उसी कमरे में पढ़ रही थी । उसने मुझे चौंक कर देखा और पूछा कि क्या हुआ ? कुछ देर तक मैं चुप रही लेकिन जब उसने दोबारा यही सवाल दोहराया तो मैंने उससे सिर्फ इतना कहा कि " उफ्फ ... यह बारिश इसने मुझे आज डरा ही दिया । 😊😊 मेरी बेटी मेरी बातें सुनकर हॅंसने लगी और कहने लगी कि " आप ही बारिश से डरते हो । मैं तो नहीं डरती । मैंने कहा कि " आज बारिश का वह मंजर जो आज मैंने देखा है वह जब तुम देखती तो तुम भी डर जाती । जोरदार आंधी के साथ में बारिश , बिजली का चमकना , बादल का गरजना , चीजों का इधर - उधर स्थान बदलना ...... क्या यह सब एक इंसान को डराने के लिए काफी नहीं है । तुम ही बताओ काफी है ना ? 🤗
कुछ लोग होंगे जो इन चीजों से ना डरते हो लेकिन मैं तो डर गई थी और यह सच्चाई स्वीकार करने में मुझे इंकार नहीं है । सचमुच में उस दिन की बारिश ने तो मुझे डरा ही दिया था ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! इसी महीने की २९ तारीख को जितिया का निर्जला व्रत था । ईश्वर की कृपा थी कि व्रत अच्छे से हो गया । मुझे तो लग रहा था कि बहुत परेशानी होगी लेकिन ईश्वर ने २ दिन से मौसम ठंडा कर दिया था जिसके कारण हम व्रतियों को कुछ राहत मिली । दिन में तो सब चीज ठीक-ठाक रहा लेकिन शाम होते हैं सर दर्द करने लगा । उसके अगले दिन यानी ३० तारीख को सूर्योदय के बाद पारण था तो मैं छः बजे उठी थी । बच्चों का स्कूल नहीं था इसलिए बच्चों को स्कूल भेजने की चिंता नहीं थी । ऐसे तो व्रत के बाद कुछ करने का मन ही नहीं करता है और उस दिन भी नहीं कर रहा था लेकिन हम औरतों का तो यही जीवन है कि हमें ना चाहते हुए भी बहुत ऐसे काम करने पड़ते हैं जो हमारे हिस्से में होते हैं । सुबह के अपने दैनिक कामों को निपटा कर मैं नहाने के लिए चली गई थी । नहाने के बाद पूजा किया , आरती की उसके बाद जीमूतवाहन भगवान को भोग लगाया । चुल्लो - सियारो को भोग लगा कर बाहर रख दिया और दोनों बच्चों और पतिदेव जी को प्रसाद देकर मैंने खुद भी प्रसाद ग्रहण किया । प्रसाद में मुझे केराव को निगलना था तो मैंने बारी - बारी से दो केराव निगलें क्योंकि मेरे दो बच्चे हैं और मैंने कल उनके लिए ही यह व्रत रखा था इसलिए मैंने दो केराव निगले । अभी भी बहुत ऐसे व्रती हैं जो केवल अपने बेटे के लिए यह व्रत रखती हैं और जितने उनके बेटे होते हैं उतने ही केराव वह आज के दिन निगलती हैं लेकिन समय के साथ सब कुछ बदला है और इस बदलाव को मैंने तो स्वीकार कर लिया है और मैं अपने बच्चों के लिए यह व्रत करती हूॅं चाहे वह मेरी बेटी हो या बेटा । मैंने अपने अब तक के जीवन में बहुत ऐसी औरतों को देखा है जो एक बेटी के लिए भी तरस रही हैं और ऐसी औरतों को ईश्वर ने माॅं बनने के सुख से वंचित कर रखा है । ऐसे में उन औरतों का कहना होता है कि भगवान मुझे एक बेटी भी दे देते । उन औरतों की बातें ऐसी औरतों को सुननी चाहिए जो कल के दिन सिर्फ अपने बेटे के लिए व्रत रखती हैं । खैर ... सबकी अपनी-अपनी सोच है जिसमें हम क्या कर सकते हैं? हम कुछ बोलते भी हैं तो उन्हें बुरा लगता है इसलिए तो मैंने बोलना भी छोड़ दिया है मुझे जो सही लगता है वह मैं खुद करती हूॅं दूसरे को करने के लिए नहीं कहती । केराव निगलने के बाद मैंने अपने लिए हलवा बनाया और पतिदेव जी ने कहा कि मैं चाय बना देता हूॅं । मैंने कहा कि चलो ! ठीक है कम से कम एक काम तो आप कर लो । मैंने हलवा बनाई और उन्होंने चाय। मैंने हलवा खाकर पहले पानी पिया उसके बाद चाय पी । इस तरह ३६ घंटों के बाद मेरे मुॅंह में कुछ गया था । मुझे तो पारण के बाद ऐसी नींद आती है कि पूछो ही मत । पारण करने के बाद मुझे नींद आ गई और मैं लेटने चली गई थी । पतिदेव जी कब ऑफिस गए मुझे आज पता ही नहीं चला । बेटी ने हीं उन्हें नाश्ता कराया जो मुझे उठने के बाद पता चला । ग्यारह बजे उठी उसके बाद मैंने चावल , काबुली चने की सब्जी , लाल साग , केला का भुजिया और बैंगन को फ्राई किया । आज के दिन ही तीन बर्नर वाले चुल्हे का फायदा मैंने उठाया । सब कुछ जल्दी-जल्दी हो गया । उसके बाद मैंने खाना खाया और बिस्तर पर दुबारा लेट गई थी ।
मेरी डायरी मेरी साथी ! यही थी मेरी सितंबर महीने की यादें । चलो फिर ! अक्टूबर की यादों के साथ तुमसे दोबारा मिलती हूॅं तब तक के लिए 👇
🤗🤗अपना ख्याल रखना और खुश रहना 🤗🤗
" गुॅंजन कमल " 💗💞💓
# डायरी
Sunanda Aswal
29-Dec-2021 01:53 PM
बाबा रे बाबा ...!😅☺️☺️👌❣️
Reply
Gunjan Kamal
29-Dec-2021 02:00 PM
क्या हुआ मैम ? 😊
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